किसी ने हम को अता नहीं की हमारी गर्दिश है अपनी गर्दिश
ख़ुद अपनी मर्ज़ी से इस जहाँ की रगों में गिर्दाब हम हुए हैं
Javed Akhtar
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
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किसी बे-घर जहाँ का राज़ होना चाहिए था
मैं वहाँ हूँ कि नहीं चाहे तो जा कर देखे
हदों के न होने की ज़िल्लत से हारे हुए
सब ख़लाओं को ख़लाओं से भिगो सकता है
दुनिया से परे जिस्म के इस बाब में आए
बस लहू की बूँद थी एहसास में
आमद
वीनस
बदन के गुम्बद-ए-ख़स्ता को साफ़ क्या करता
ले जाऊँ कहीं उन को बदन पार ही रक्खूँ
माज़रत
मुस्तक़बिल की आँख