बाद में रखे सराबों के दयारों में क़दम
पहले वो साँस की सरहद पे तो आ कर देखे
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एक न्यूक्लेयर नज़्म
हर एक ख़लिया को आईना घर बनाते हुए
चमगादड़
जिस्मों की मेहराब में रहना पड़ता है
गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं
खींच कर ले जाएगा अंजान महवर की तरफ़
ख़ला की रूह किस लिए हो मेरे इख़्तियार में
ले जाऊँ कहीं उन को बदन पार ही रक्खूँ
हदों के न होने की ज़िल्लत से हारे हुए
कभी तो मंज़रों के इस तिलिस्म से उभर सकूँ
मिरे सिमटे लहू का इस्तिआरा ले गया कोई
नया अदम कोई नई हदों का इंतिख़ाब अब