ना-मुकम्मल तआरुफ़
और जन्मों से तिरे अंदर छुपा था वो भी मैं
और तिरे इज़हार से बाहर उड़ा था वो भी मैं
और तुझ से तुझ तलक जो फ़ासला था वो भी मैं
और सारे फ़ासलों में रास्ता था वो भी मैं
और तेरी रात की ज़द पर जला था वो भी मैं
और ऐवान-ए-फ़लक में जो बुझा था वो भी मैं
और खंडर के दिल में जो नग़्मा-सरा था वो भी मैं
और सिफ़र के गुम्बदों में गूँजता था वो भी मैं
और न होने की फ़ज़ा में हो गया था वो भी मैं
और तेरे रंग से बिछड़ा हुआ था वो भी मैं
और बदन के पार तुझ को ढूँडता था वो भी मैं
और साँसों के किनारों पर बसा था वो भी मैं
और अदम के बादबानों में हवा था वो भी मैं
और बिखरी कहकशाँ का सिलसिला था वो भी मैं
और सय्यारों के महवर से उगा था वो भी मैं
और अज़ल की रूह से पहले बना था वो भी मैं
और अबद के उस तरफ़ इक नक़्श-ए-पा था वो भी मैं
और ख़ुद अपने से पहले आ पड़ा था वो भी मैं
और ख़ुद अपने से पहले जा चुका था वो भी मैं
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