गाए

घास के सब्ज़ मैदान तो रह गए हैं फ़क़त ख़्वाब में

मेरा भारी बदन

चारों पैरों की तहरीक पर उठ के चल तो पड़ा है

इन आवारा गलियों की अंगड़ाइयों में

मगर शहर की दौड़ती फिरती साँसों से टकरा के

मिस्मार होने लगी है मिरी हर अदा

अब तो आवारा गलियों की परछाईं में

मक्खियाँ शौक़ से कर रही हैं ज़िना

मिरी मग़्मूम आँख के अफ़्लाक पर

अपनी दुम को हिला कर करूँ कब तलक आँख टेढ़ी उड़ानों को सीधी बता

रास्तों पर भटकते हुए

रूह की परवरिश के लिए

दो जहानों के काग़ज़ को मुँह में मुसलसल चबाती हूँ मैं

सारी उम्मत की माँ बन के

अपने ही फैलाओ में बैठ जाती हूँ मैं

अब के जब मुझ को माँ ही बनाया गया तो फिर

उस मुक़द्दस बदन में जो घर कर गए हैं

इन अंधे सहीफ़ों से निकले हुए दूध के चंद क़तरे पियो

और अपने सराबों की गहराइयों में जियो

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In Hindi By Famous Poet Riyaz Latif. is written by Riyaz Latif. Complete Poem in Hindi by Riyaz Latif. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.