Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_818b881f8ef1a77e0b81a07dab7a20f7, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
बनारस - रियाज़ लतीफ़ कविता - Darsaal

बनारस

भटकती हुई वक़्त की आत्माएँ

तिरे घाट के पत्थरों की ज़बाँ से

युगों की सदाओं की सूरत उभर कर

घुली जा रही है बुझे पानियों में

तिरी साँस की शाह-राहों पर फूटी

वही तंग गलियाँ, वो गलियों में गलियाँ!

कि जैसे रगों का बुने जाल कोई

जहाँ लाख भटको, न कोई सफ़र हो

सफ़र फ़ासला है, सफ़र मरहला है

यहीं पर हयात और यहीं पर फ़ना है

इसी मरहले से इसी, फ़ासले से

इक इम्कान बन कर जो बहता है पानी

सभी अपनी अपनी क़दामत के आसार

धीरे से उस में बहाने लगे हैं

सभी अपनी फ़लक-बोस तन्हाई

तिरे उफ़ुक़ पर सजाने लगे हैं

कोई राग ख़ामोश गाने लगे हैं

मुक़द्दस बयाबान, जिस्मों के मरकज़!

तिरी रूह के बे-कराँ सर्द, कोने में

सदियाँ ग़लाज़त किए जा रही हैं

बनारस तिरी सब मुजर्रद अदाएँ

हसीं मौत पा कर जिए जा रही हैं!

(581) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Riyaz Latif. is written by Riyaz Latif. Complete Poem in Hindi by Riyaz Latif. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.