गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं
गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं
मुहीत साँसों के पार जा कर बहुत ही नायाब हम हुए हैं
किसी ने हम को अता नहीं की हमारी गर्दिश है अपनी गर्दिश
ख़ुद अपनी मर्ज़ी से इस जहाँ की रगों में गिर्दाब हम हुए हैं
अजीब खोए हुए जहानों की गूँज है अपने गुम्बदों में
न जाने किस की समाअतों के मज़ार का बाब हम हुए हैं
जो हम में मिस्मार हो चुका है उसी से तामीर है हमारी
अदम के पत्थर तराश कर ही अबद की मेहराब हम हुए हैं
तमाम सतहें उलट रही हैं हयात की मौत की ख़ुदा की
जो तेरे दिल से उभर के आते हैं ऐसे सैलाब हम हुए हैं
'रियाज़' डर है कहीं न आँखों की कश्तियों में छुपे समुंदर
जुमूद टूटा है सारी मौजों का ऐसे बे-ताब हम हुए हैं
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