Ghazals of Riyaz Latif
नाम | रियाज़ लतीफ़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Riyaz Latif |
जन्म की तारीख | 1964 |
जन्म स्थान | USA |
तमाम ख़लियों में अक्सर सुनाई देता है
ताख़ीर आ पड़ी जो बदन के ज़ुहूर में
सब ख़लाओं को ख़लाओं से भिगो सकता है
रेत है इज़हार के पानी के पार
नया अदम कोई नई हदों का इंतिख़ाब अब
मिरे सिमटे लहू का इस्तिआरा ले गया कोई
मैं वहाँ हूँ कि नहीं चाहे तो जा कर देखे
ले जाऊँ कहीं उन को बदन पार ही रक्खूँ
किसी बे-घर जहाँ का राज़ होना चाहिए था
किनारा-दर-किनारा मुस्तक़िल मंजधार है यूँ भी
ख़ुद अपना इंतिज़ार भी
खींच कर ले जाएगा अंजान महवर की तरफ़
ख़ला की रूह किस लिए हो मेरे इख़्तियार में
जिस्मों की मेहराब में रहना पड़ता है
जाल रगों का गूँज लहू की साँस के तेवर भूल गए
हिसार के सभी निज़ाम गर्द गर्द हो गए
हर एक ख़लिया को आईना घर बनाते हुए
हदों के न होने की ज़िल्लत से हारे हुए
गुज़र चुके हैं बदन से आगे नजात का ख़्वाब हम हुए हैं
ग़ैबी दुनियाओं से तन्हा क्यूँ आता है
दुनिया से परे जिस्म के इस बाब में आए
बदन के गुम्बद-ए-ख़स्ता को साफ़ क्या करता