ज़रा जो हम ने उन्हें आज मेहरबाँ देखा
न हम से पूछिए क्या रंग-ए-आसमाँ देखा
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उठता है एक पाँव तो थमता है एक पाँव
बच जाए जवानी में जो दुनिया की हवा से
ये क़ैस-ओ-कोहकन के से फ़साने बन गए कितने
गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के
थी ज़र्फ़-ए-वज़ू में कोई शय पी गए क्या आप
सय्याद तिरा घर मुझे जन्नत सही मगर
मुश्किल उस कूचे से उठना हो गया
दर्द हो तो दवा करे कोई
परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है
'रियाज़' इक चुलबुला सा दिल हो हम हों
इस से अच्छे दश्त-ए-सहरा इस से अच्छे गर्द-बाद
उतरी है आसमाँ से जो कल उठा तो ला