ये सुन के आज हश्र में वो बात भी तो हो
हँस कर कहा कि दिन है कहीं रात भी तो हो
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दर्द हो तो दवा करे कोई
वो पूछते हैं शौक़ तुझे है विसाल का
दिल ढूँढती है निगह किसी की
ख़्वाब में भी नज़र आ जाए जो घर की सूरत
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की
रहमत से 'रियाज़' उस की थे साथ फ़रिश्ते दो
इस वास्ते कि आव-भगत मय-कदे में हो
ये काफ़िर बुत जिन्हें दावा है दुनिया में ख़ुदाई का
उठता है एक पाँव तो थमता है एक पाँव
दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का
ज़रूर पाँव में अपने हिना वो मल के चले
बात दिल की ज़बान पर आई