ये क़ैस-ओ-कोहकन के से फ़साने बन गए कितने
किसी ने टुकड़े कर के सब हमारी दास्ताँ रख दी
Parveen Shakir
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मतलब की बात शक्ल से पहचान जाइए
काफ़िर बुतों के नाम हों क्यूँकर तमाम हिफ़्ज़
मेरे घर में ग़ैर के डर से कभी छुप जाइए
फ़रियाद-ए-जुनूँ और है बुलबुल की फ़ुग़ाँ और
पर्दे पर्दे में ये कर लेती हैं राहें क्यूँकर
ज़रूर पाँव में अपने हिना वो मल के चले
उठवाओ मेज़ से मय-ओ-साग़र 'रियाज़' जल्द
जो उन से कहो वो यक़ीं जानते हैं
उस हुस्न का शैदा हूँ उस हुस्न का दीवाना
शोख़ी से हर शगूफ़े के टुकड़े उड़ा दिए
बाम पर आए कितनी शान से आज
कोई पूछे न हम से क्या हुआ दिल