ये मय-कदा है कि मस्जिद ये आब है कि शराब
कोई भी ज़र्फ़ बराए वुज़ू नहीं बाक़ी
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ज़रूर पाँव में अपने हिना वो मल के चले
पी ली हम ने शराब पी ली
कुछ भी हो 'रियाज़' आँख में आँसू नहीं आते
हमारी आँखों में आओ तो हम दिखाएँ तुम्हें
उस हुस्न का शैदा हूँ उस हुस्न का दीवाना
सुना है 'रियाज़' अपनी दाढ़ी बढ़ा कर
जो थे हाथ मेहंदी लगाने के क़ाबिल
वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों
'रियाज़' एहसास-ए-ख़ुद्दारी पे कितनी चोट लगती है
तेज़ है पीने में हो जाएगी आसानी मुझे
कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर