ये सर-ब-मोहर बोतलें जो हैं शराब की
रातें हैं इन में बंद हमारे शबाब की
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कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
उठवाओ मेज़ से मय-ओ-साग़र 'रियाज़' जल्द
'रियाज़' इक चुलबुला सा दिल हो हम हों
मय-ख़ाने में मज़ार हमारा अगर बना
इश्क़ में दिल-लगी सी रहती है
वा'दा था जिस का हश्र में वो बात भी तो हो
बहुत ही पर्दे में इज़हार-ए-आरज़ू करते
धोके से पिला दी थी उसे भी कोई दो घूँट
किसी से वस्ल में सुनते ही जान सूख गई
वो बोले वस्ल की हाँ है तो प्यारी प्यारी रात
इस वास्ते कि आव-भगत मय-कदे में हो
वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों