वो पूछते हैं शौक़ तुझे है विसाल का
मुँह चूम लूँ जवाब ये है इस सवाल का
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रंग लाएगा दीदा-ए-पुर-आब
मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
न आया हमें इश्क़ करना न आया
जाम है तौबा-शिकन तौबा मिरी जाम-शिकन
इस से अच्छे दश्त-ए-सहरा इस से अच्छे गर्द-बाद
मर गया हूँ पे तअ'ल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से
होगी वो दिल में जो ठानी जाएगी
भर भर के जाम बज़्म में छलकाए जाते हैं
ये कम-बख़्त इक जहान-ए-आरज़ू है
पर्दे पर्दे में ये कर लेती हैं राहें क्यूँकर
हम जाम-ए-मय के भी लब तर चूसते नहीं
क्या मज़ा देती है बिजली की चमक मुझ को 'रियाज़'