उठवाओ मेज़ से मय-ओ-साग़र 'रियाज़' जल्द
आते हैं इक बुज़ुर्ग पुराने ख़याल के
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थी ज़र्फ़-ए-वज़ू में कोई शय पी गए क्या आप
रंग लाएगा दीदा-ए-पुर-आब
बड़े पाक तीनत बड़े साफ़ बातिन
आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया
शोख़ी से हर शगूफ़े के टुकड़े उड़ा दिए
कह के मैं दिल की कहानी किस क़दर खोया गया
जाने वाले न हम उस कूचे में आने वाले
हम ने देखा तरफ़-ए-मय-कदा जाते थे 'रियाज़'
कहाँ ये बात हासिल है तिरी मस्जिद को ऐ ज़ाहिद
मेरे घर में ग़ैर के डर से कभी छुप जाइए
वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों