सुना है 'रियाज़' अपनी दाढ़ी बढ़ा कर
बुढ़ापे में अल्लाह वाले हुए हैं
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1170) Peoples Rate This
ये क़ैस-ओ-कोहकन के से फ़साने बन गए कितने
क्या शराब-ए-नाब न पस्ती से पाया है उरूज
नहीं छुपता तिरे इ'ताब का रंग
पाया जो तुझे तो खो गए हम
ज़िद हमारी दुआ से होती है
हम को 'रियाज़' जानते हैं मानते हैं सब
ये कोई बात है सुनता न बाग़बाँ मेरी
ये गवारा कि मिरा दस्त-ए-तमन्ना बाँधे
बाम पर आए कितनी शान से आज
परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है
कुछ भी हो 'रियाज़' आँख में आँसू नहीं आते
नज्द में क्या क़ैस का है उर्स आज