रंग लाएगा दीदा-ए-पुर-आब
देखना दीदा-ए-पुर-आब का रंग
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मर गए फिर भी तअल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से
ये काली काली बोतलें जो हैं शराब की
हम जानते हैं लुत्फ़-ए-तक़ाज़ा-ए-मय-फ़रोश
मतलब की बात शक्ल से पहचान जाइए
ऐसी ही इंतिज़ार में लज़्ज़त अगर न हो
हो के बेताब बदल लेते थे अक्सर करवट
वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता
ख़ुदा आबाद रक्खे मय-कदे को
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की
आफ़त हमारी जान को है बे-क़रार दिल
मुफ़लिसों की ज़िंदगी का ज़िक्र क्या
ये गवारा कि मिरा दस्त-ए-तमन्ना बाँधे