क़द्र मुझ रिंद की तुझ को नहीं ऐ पीर-ए-मुग़ाँ
तौबा कर लूँ तो कभी मय-कदा आबाद न हो
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
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Wasi Shah
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Mohsin Naqvi
Gulzar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
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मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका
'रियाज़' आने में है उन के अभी देर
इतनी पी है कि ब'अद-ए-तौबा भी
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
ये सीधे जो अब ज़ुल्फ़ों वाले हुए हैं
ये काफ़िर बुत जिन्हें दावा है दुनिया में ख़ुदाई का
बच जाए जवानी में जो दुनिया की हवा से
घर में पहुँचा था कि आई नज्द से आवाज़-ए-क़ैस
छेड़ते हैं गुदगुदाते हैं फिर अरमाँ आज-कल
ख़ुदा आबाद रक्खे मय-कदे को
जाने वाले न हम उस कूचे में आने वाले
मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद