नासेह के सर पर एक लगाई तड़ाक़ से
फिर हाथ मल रहे हैं कि अच्छी पड़ी नहीं
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पी के ऐ वाइज़ नदामत है मुझे
ये काली काली बोतलें जो हैं शराब की
ज़िद हमारी दुआ से होती है
आलम-ए-हू में कुछ आवाज़ सी आ जाती है
बड़े पाक तीनत बड़े साफ़ बातिन
कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
नहीं छुपता तिरे इ'ताब का रंग
जवानी मय-ए-अरग़वानी से अच्छी
हंस के पैमाना दिया ज़ालिम ने तरसाने के बा'द
ये मय-कदा है कि मस्जिद ये आब है कि शराब
आगे कुछ बढ़ कर मिलेगी मस्जिद-ए-जामे 'रियाज़'
अक्स पर यूँ आँख डाली जाएगी