मेरी सज-धज तो कोई इश्क़-ए-बुताँ में देखे
साथ क़श्क़े के है ज़ुन्नार-ए-बरहमन कैसा
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ये मय-कदा है कि मस्जिद ये आब है कि शराब
मुश्किल उस कूचे से उठना हो गया
ख़्वाब में भी नज़र आ जाए जो घर की सूरत
सुब्ह है रात कहाँ अब वो कहाँ रात की बात
ख़ुदा के हाथ है बिकना न बिकना मय का ऐ साक़ी
दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का
मय-ख़ाने में मज़ार हमारा अगर बना
पाऊँ तो उन हसीनों के मुँह चूम लूँ 'रियाज़'
कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
जो हम आए तो बोतल क्यूँ अलग पीर-ए-मुग़ाँ रख दी
वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता
हमारी आँखों में आओ तो हम दिखाएँ तुम्हें