मेरे आग़ोश में यूँही कभी आ जा तू भी
जिस अदा से तिरी आँखों में हया आई है
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आफ़त हमारी जान को है बे-क़रार दिल
ग़रीब हम हैं ग़रीबों की भी ख़ुशी हो जाए
मुश्किल उस कूचे से उठना हो गया
क्या शराब-ए-नाब न पस्ती से पाया है उरूज
पी ली हम ने शराब पी ली
नासेह के सर पर एक लगाई तड़ाक़ से
रंग लाएगा दीदा-ए-पुर-आब
ख़ुदा के हाथ है बिकना न बिकना मय का ऐ साक़ी
होगी वो दिल में जो ठानी जाएगी
उस हुस्न का शैदा हूँ उस हुस्न का दीवाना
नज़र आती है दूर की सूरत
क्या मज़ा देती है बिजली की चमक मुझ को 'रियाज़'