मेहंदी लगाए बैठे हैं कुछ इस अदा से वो
मुट्ठी में उन की दे दे कोई दिल निकाल के
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हंस के पैमाना दिया ज़ालिम ने तरसाने के बा'द
जाने वाले न हम उस कूचे में आने वाले
ये मय-कदा है कि मस्जिद ये आब है कि शराब
रंग लाएगा दीदा-ए-पुर-आब
ख़ुदा के हाथ है बिकना न बिकना मय का ऐ साक़ी
बड़े पाक तीनत बड़े साफ़ बातिन
है भी कुछ या नहीं मैं हाथ लगा कर देखूँ
ये बला मेरे सर चढ़ी ही नहीं
कहती है ऐ 'रियाज़' दराज़ी ये रीश की
भर भर के जाम बज़्म में छलकाए जाते हैं
ये सीधे जो अब ज़ुल्फ़ों वाले हुए हैं
हिन्दोस्ताँ में धूम है किस की ज़बान की