मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
मस्जिद में तो ज़िक्र-ए-मय-ओ-मीना नहीं होता
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Rahat Indori
Gulzar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(464) Peoples Rate This
दिल ढूँढती है निगह किसी की
उन के होते कौन देखे दीदा-ओ-दिल का बिगाड़
अल्लाह-रे नाज़ुकी कि जवाब-ए-सलाम में
उन्हीं में से कोई आए तो मयख़ाने में आ जाए
दर्द हो तो दवा करे कोई
'रियाज़' एहसास-ए-ख़ुद्दारी पे कितनी चोट लगती है
बहुत ही पर्दे में इज़हार-ए-आरज़ू करते
जो थे हाथ मेहंदी लगाने के क़ाबिल
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की
मेरे पहलू में हमेशा रही सूरत अच्छी
निगह-ए-नाज़ इधर है निगह-ए-शौक़ उधर
वो बोले वस्ल की हाँ है तो प्यारी प्यारी रात