लुट गई शब को दो शय जिस को छुपाते थे बहुत
इन हसीनों से कोई पूछे कि क्या जाता रहा
Habib Jalib
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दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
इस वास्ते कि आव-भगत मय-कदे में हो
मिरे घर मिस्ल तबर्रुक के ये सामाँ निकला
आबाद करें बादा-कश अल्लाह का घर आज
किसी का हंस के कहना मौत क्यूँ आने लगी तुम को
जवानी मय-ए-अरग़वानी से अच्छी
न आया हमें इश्क़ करना न आया
वो गुल हैं न उन की वो हँसी है
वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों
निगह-ए-नाज़ इधर है निगह-ए-शौक़ उधर
बाम पर आए कितनी शान से आज
इस से अच्छे दश्त-ए-सहरा इस से अच्छे गर्द-बाद