किस किस तरह बुलाए गए मय-कदे में आज
पहुँचे बना के शक्ल जो हम रोज़ा-दार की
Javed Akhtar
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कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
ले गया घर से उन्हें ग़ैर के घर का ता'वीज़
पर्दे पर्दे में ये कर लेती हैं राहें क्यूँकर
हम ने देखा तरफ़-ए-मय-कदा जाते थे 'रियाज़'
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
जो हम आए तो बोतल क्यूँ अलग पीर-ए-मुग़ाँ रख दी
कह के मैं दिल की कहानी किस क़दर खोया गया
थी ज़र्फ़-ए-वज़ू में कोई शय पी गए क्या आप
क़द्र मुझ रिंद की तुझ को नहीं ऐ पीर-ए-मुग़ाँ
हंस के पैमाना दिया ज़ालिम ने तरसाने के बा'द
मतलब की बात शक्ल से पहचान जाइए
सय्याद तिरा घर मुझे जन्नत सही मगर