ख़ुदा के हाथ है बिकना न बिकना मय का ऐ साक़ी
बराबर मस्जिद-ए-जामे के हम ने अब दुकाँ रख दी
Faiz Ahmad Faiz
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दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों
अगर उन के लब पर गिला है किसी का
दिल ढूँढती है निगह किसी की
हाथ रक्खा मैं ने सोते में कहाँ
बाग़बाँ काम हमें क्या है वो उजड़े कि रहे
'रियाज़' इक चुलबुला सा दिल हो हम हों
मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद
जवानी मय-ए-अरग़वानी से अच्छी
रहमत से 'रियाज़' उस की थे साथ फ़रिश्ते दो
न तारे अफ़्शाँ न कहकशाँ है नमूना हँसती हुई जबीं का