ख़ुदा आबाद रक्खे मय-कदे को
बहुत सस्ते छुटे दुनिया-ओ-दीं से
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(395) Peoples Rate This
ले गया घर से उन्हें ग़ैर के घर का ता'वीज़
वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता
मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका
ये काली काली बोतलें जो हैं शराब की
है भी कुछ या नहीं मैं हाथ लगा कर देखूँ
मय रहे मीना रहे गर्दिश में पैमाना रहे
पीरी में 'रियाज़' अब भी जवानी के मज़े हैं
सुना है 'रियाज़' अपनी दाढ़ी बढ़ा कर
परा बाँधे सफ़-ए-मिज़्गाँ खड़ी है
अब मुजरिमान-ए-इश्क़ से बाक़ी हूँ एक मैं
बहुत ही पर्दे में इज़हार-ए-आरज़ू करते
रंग लाएगा दीदा-ए-पुर-आब