जिस दिन से हराम हो गई है
मय ख़ुल्द-मक़ाम हो गई है
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(525) Peoples Rate This
जो उन से कहो वो यक़ीं जानते हैं
आबाद करें बादा-कश अल्लाह का घर आज
अगर उन के लब पर गिला है किसी का
'रियाज़' एहसास-ए-ख़ुद्दारी पे कितनी चोट लगती है
दुनिया से अलग हम ने मयख़ाने का दर देखा
कली चमन में खिली तो मुझे ख़याल आया
ग़म मुझे देते हो औरों की ख़ुशी के वास्ते
होगी वो दिल में जो ठानी जाएगी
शैख़-जी गिर गए थे हौज़ में मयख़ाने के
ग़रीब हम हैं ग़रीबों की भी ख़ुशी हो जाए
मेरी सज-धज तो कोई इश्क़-ए-बुताँ में देखे
पाऊँ तो इन हसीनों का मुँह चूम लूँ 'रियाज़'