इस हज में वो बुत भी साथ होगा
ये सच है 'रियाज़' तो गए हम
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मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
रोते जो आए थे रुला के गए
हमारी आँखों में आओ तो हम दिखाएँ तुम्हें
ये कहाँ लगी ये कहाँ लगी जो क़फ़स से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा
कहना किसी का सुब्ह-ए-शब-ए-वस्ल नाज़ से
दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का
जवानी मय-ए-अरग़वानी से अच्छी
'रियाज़' तौबा न टूटे न मय-कदा छूटे
ये कहाँ से हम गए हैं कहाँ कहें क्या तिरी तग-ओ-ताज़ में
ले उड़े गेसू परेशानी मिरी