दर्द हो तो दवा करे कोई
मौत ही हो तो क्या करे कोई
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Gulzar
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वो जोबन बहुत सर उठाए हुए हैं
हम बंद किए आँख तसव्वुर में पड़े हैं
आलम-ए-हू में कुछ आवाज़ सी आ जाती है
अक्स पर यूँ आँख डाली जाएगी
इश्क़ में दिल-लगी सी रहती है
ज़र्फ़-ए-वज़ू है जाम है इक ख़म है इक सुबू
जवानी मय-ए-अरग़वानी से अच्छी
हो के बेताब बदल लेते थे अक्सर करवट
उठवाओ मेज़ से मय-ओ-साग़र 'रियाज़' जल्द
वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता
ग़लत है आप न थे हम-कलाम ख़ल्वत में
सय्याद तिरा घर मुझे जन्नत सही मगर