भर भर के जाम बज़्म में छलकाए जाते हैं
हम उन में हैं जो दूर से तरसाए जाते हैं
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Gulzar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(608) Peoples Rate This
होगी वो दिल में जो ठानी जाएगी
सुना है 'रियाज़' अपनी दाढ़ी बढ़ा कर
अहल-ए-हरम से कह दो कि बिगड़ी नहीं है बात
मेरे घर में ग़ैर के डर से कभी छुप जाइए
उफ़ रे उभार उफ़ रे ज़माना उठान का
हाथ रक्खा मैं ने सोते में कहाँ
हम जाम-ए-मय के भी लब तर चूसते नहीं
जो उन से कहो वो यक़ीं जानते हैं
अल्लाह-रे नाज़ुकी कि जवाब-ए-सलाम में
मेरे आग़ोश में यूँही कभी आ जा तू भी
रूठे हुए कि अपने ज़रा अब मनाए ज़ुल्फ़
वो गुल हैं न उन की वो हँसी है