बाग़बाँ काम हमें क्या है वो उजड़े कि रहे
जब हमीं बाग़ से निकले तो नशेमन कैसा
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
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Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
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घर में दस हों तो ये रौनक़ नहीं होगी घर में
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की
शोख़ी से हर शगूफ़े के टुकड़े उड़ा दिए
क़ुलक़ुल-ए-मीना सदा नाक़ूस की शोर-ए-अज़ाँ
पीरी में 'रियाज़' अब भी जवानी के मज़े हैं
उठता है एक पाँव तो थमता है एक पाँव
मर गया हूँ पे तअ'ल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से
ज़िद हमारी दुआ से होती है
गुल मुरक़्क़ा' हैं तिरे चाक गरेबानों के
ज़रा जो हम ने उन्हें आज मेहरबाँ देखा
रूठे हुए कि अपने ज़रा अब मनाए ज़ुल्फ़