अज़ाँ का काम चल जाए जो नाक़ूस-ए-बरहमन से
बड़ा ये बोझ उतरे ऐ मोअज़्ज़िन तेरी गर्दन से
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ये कहाँ लगी ये कहाँ लगी जो क़फ़स से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा
आलम-ए-हू में कुछ आवाज़ सी आ जाती है
कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
कुछ भी हो 'रियाज़' आँख में आँसू नहीं आते
अच्छी पी ली ख़राब पी ली
होगी वो दिल में जो ठानी जाएगी
दिल-जलों से दिल-लगी अच्छी नहीं
मेरे पहलू में हमेशा रही सूरत अच्छी
जो उन से कहो वो यक़ीं जानते हैं
सितम-ए-ना-रवा को रोते हैं
मेरे आग़ोश में यूँही कभी आ जा तू भी
दर खुला सुब्ह को पौ फटते ही मय-ख़ाने का