अच्छी पी ली ख़राब पी ली
जैसी पाई शराब पी ली
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कली चमन में खिली तो मुझे ख़याल आया
कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
तेज़ है पीने में हो जाएगी आसानी मुझे
इतनी पी है कि ब'अद-ए-तौबा भी
क़ुलक़ुल-ए-मीना सदा नाक़ूस की शोर-ए-अज़ाँ
दर्द हो तो दवा करे कोई
ज़रा जो हम ने उन्हें आज मेहरबाँ देखा
रंग पर कल था अभी लाला-ए-गुलशन कैसा
वो हों मुट्ठी में उन की दिल हो हम हों
वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता
मर गए फिर भी तअल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से
जफ़ा में नाम निकालो न आसमाँ की तरह