'रियाज़' इक चुलबुला सा दिल हो हम हों
'रियाज़' इक चुलबुला सा दिल हो हम हों
हसीनों की भरी महफ़िल हो हम हों
कहा लैला से किस ने दिल हो तो हो
कभी तो हो तिरा महमिल हो हम हों
मज़ा दे जाए हम को ख़्वाब-ए-ग़फ़लत
मज़ा आ आए तुम ग़ाफ़िल हो हम हों
ज़रा हम भी सुनें तुम ने कहा क्या
अदू से जब सर-ए-महफ़िल हो हम हों
लिए हल्क़े में हों सब अहल-ए-महशर
कमर में हाथ हो क़ातिल हो हम हूँ
बने तिल आँख का घट कर शब-ए-वस्ल
हमारी आँख में ये तिल हो हम हों
तिरी उल्टी छुरी दिल में उतर जाए
अदू जब इस तरह बिस्मिल हो हम हों
ये थक कर बैठना हो वज्ह-ए-आराम
मज़ा है सख़्ती-ए-मंज़िल हो हम हों
न ख़ल्वत चाहिए हम को न मा'शूक़
'रियाज़' इक आरज़ू-ए-दिल हो हम हों
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