मुँह दिखा कर मुँह छुपाना कुछ नहीं
मुँह दिखा कर मुँह छुपाना कुछ नहीं
कुछ नहीं ये मुँह दिखाना कुछ नहीं
था जो क्या कुछ बात कहते कुछ न था
आदमी का भी ठिकाना कुछ नहीं
गुल हैं माशूक़ों के दामन के लिए
क़ब्र-ए-आशिक़ पर चढ़ाना कुछ नहीं
है सताने का भी लुत्फ़ इक वक़्त पर
हर घड़ी उन को सताना कुछ नहीं
बे-मनाए मन गए हम आप से
ऐसे रूठे को मनाना कुछ नहीं
हाथ से गुलचीं के झटके कौन खाए
शाख़-ए-गुल पर आशियाना कुछ नहीं
ये हसीं हैं प्यार कर लेने की चीज़
इन हसीनों को सताना कुछ नहीं
ऐ हबाब अपनी ज़रा हस्ती तो देख
इस पर इतना सर उठाना कुछ नहीं
तू ने तौबा की तो है लेकिन 'रियाज़'
बात का तेरी ठिकाना कुछ नहीं
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