मतलब की बात शक्ल से पहचान जाइए
मतलब की बात शक्ल से पहचान जाइए
मैं क्यूँ कहूँ ज़बान से ख़ुद जान जाइए
आए वो नज़्अ' में भी न हसरत निकालने
अब ज़ेर-ए-ख़ाक ले के सब अरमान जाइए
उस भोली भोली शक्ल के हो जाइए निसार
उन भोली भोली बातों के क़ुर्बान जाइए
बाँहें गले में डालिए भी अब हँसी-ख़ुशी
ये है शब-ए-विसाल कहा मान जाइए
क्या था जो मुस्कुराते हुए कह गए अभी
ख़ाक आ के मेरे दर की ज़रा छान जाइए
मेहमाँ-नवाज़ उन सा कोई दूसरा नहीं
जी में है उन के घर कभी मेहमान जाइए
है क़स्द आज हज़रत-ए-दिल उन की बज़्म का
अल्लाह आप का है निगहबान जाइए
जा बैठिए तुनुक के ज़रा मुझ से फिर अलग
बे-कुछ कहे सुने भी बुरा मान जाइए
बद-युम्न मेरे हक़ में है सुब्ह-ए-शब-ए-विसाल
खोले हुए न बाल परेशान जाइए
क्या ताब है 'रियाज़' तुम्हारी ज़बान की
रंगीनी-ए-कलाम के क़ुर्बान जाइए
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