हो के बेताब बदल लेते थे अक्सर करवट
जिस दिन से हराम हो गई है
ग़लत है आप न थे हम-कलाम ख़ल्वत में
ये गवारा कि मिरा दस्त-ए-तमन्ना बाँधे
मेरे पहलू में हमेशा रही सूरत अच्छी
दर्द हो तो दवा करे कोई
हम जानते हैं लुत्फ़-ए-तक़ाज़ा-ए-मय-फ़रोश
क्या शराब-ए-नाब न पस्ती से पाया है उरूज
बाम पर आए कितनी शान से आज
क्या मज़ा देती है बिजली की चमक मुझ को 'रियाज़'
ये काली काली बोतलें जो हैं शराब की