रियाज़ ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का रियाज़ ख़ैराबादी (page 2)
नाम | रियाज़ ख़ैराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Riyaz Khairabadi |
जन्म की तारीख | 1853 |
मौत की तिथि | 1934 |
जन्म स्थान | Khairabad |
पी के ऐ वाइज़ नदामत है मुझे
पाऊँ तो उन हसीनों के मुँह चूम लूँ 'रियाज़'
पाऊँ तो इन हसीनों का मुँह चूम लूँ 'रियाज़'
निगह-ए-नाज़ इधर है निगह-ए-शौक़ उधर
नासेह के सर पर एक लगाई तड़ाक़ से
नज्द में क्या क़ैस का है उर्स आज
मुफ़लिसों की ज़िंदगी का ज़िक्र क्या
मेरी सज-धज तो कोई इश्क़-ए-बुताँ में देखे
मिरे घर मिस्ल तबर्रुक के ये सामाँ निकला
मेरे घर में ग़ैर के डर से कभी छुप जाइए
मेरे आग़ोश में यूँही कभी आ जा तू भी
मेहंदी लगाए बैठे हैं कुछ इस अदा से वो
मर गया हूँ पे तअ'ल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से
मर गए फिर भी तअल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से
मय-ख़ाने में मज़ार हमारा अगर बना
मय-ख़ाने में क्यूँ याद-ए-ख़ुदा होती है अक्सर
लुट गई शब को दो शय जिस को छुपाते थे बहुत
लब-ए-मय-गूँ का तक़ाज़ा है कि जीना होगा
क्या शराब-ए-नाब न पस्ती से पाया है उरूज
क्या मज़ा देती है बिजली की चमक मुझ को 'रियाज़'
कुछ भी हो 'रियाज़' आँख में आँसू नहीं आते
कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर
किसी का हंस के कहना मौत क्यूँ आने लगी तुम को
किस किस तरह बुलाए गए मय-कदे में आज
ख़ुदा के हाथ है बिकना न बिकना मय का ऐ साक़ी
ख़ुदा आबाद रक्खे मय-कदे को
कली चमन में खिली तो मुझे ख़याल आया
कहती है ऐ 'रियाज़' दराज़ी ये रीश की
कहना किसी का सुब्ह-ए-शब-ए-वस्ल नाज़ से
कहाँ ये बात हासिल है तिरी मस्जिद को ऐ ज़ाहिद