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सबा गुलों की हर इक पंखुड़ी सँवारती है - रिन्द साग़री कविता - Darsaal

सबा गुलों की हर इक पंखुड़ी सँवारती है

सबा गुलों की हर इक पंखुड़ी सँवारती है

अजीब ढंग से ये आरती उतारती है

उफ़ुक़ पे फिर उभर आए हैं तीरगी के नशेब

उमीद जीती हुई दिल की बाज़ी हारती है

लहक के गुज़री है कुछ यूँ मुराद की ख़ुशबू

कि रूह फिर दिल-ए-हस्सास को पुकारती है

ख़मोश शहर की सुनसान सर्द रातों में

तुम्हारी याद मिरे साथ शब गुज़ारती है

चराग़-ए-हसरत-ओ-अरमाँ जलाओगे कैसे

हवा-ए-दहर तो रह रह के फूँक मारती है

सजाए हैं बड़ी मुश्किल से 'रिंद' पलकों पर

जिन्हें तुम अश्क समझते हो दिल की आरती है

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In Hindi By Famous Poet Rind Saghari. is written by Rind Saghari. Complete Poem in Hindi by Rind Saghari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.