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हर एक जिस्म पे बस एक ही से गहने लगे - रिन्द साग़री कविता - Darsaal

हर एक जिस्म पे बस एक ही से गहने लगे

हर एक जिस्म पे बस एक ही से गहने लगे

हमें तो लोग तुम्हारा ही रूप पहने लगे

बस एक लौ सी नज़र आई थी फिर उस के बा'द

बुझे चराग़ सियह पानियों पे बहने लगे

उसे भी हादिसा कहिए कि ख़ुश्क दरिया पर

पड़ी जो धूप तो पत्थर पिघल के बहने लगे

रुतों ने करवटें बदलीं तो हम ने भी इक बार

फिर अपने घर को सजाया और उस में रहने लगे

न जाने क्यूँ मिरे अहबाब मेरे बारे में

जो बात आम थी सरगोशियों में कहने लगे

जो क़तरा क़तरा पिया हम ने ज़िंदगी का ज़हर

तो 'रिंद' बन के हर इक दिल का दर्द बहने लगे

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In Hindi By Famous Poet Rind Saghari. is written by Rind Saghari. Complete Poem in Hindi by Rind Saghari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.