वादे पे तुम न आए तो कुछ हम न मर गए
कहने को बात रह गई और दिन गुज़र गए
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क्या सुन चुके हैं आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार हाथ
मय पिला ऐसी कि साक़ी न रहे होश मुझे
मुझे दे के दिल जान खोना पड़ा है
था मुक़द्दम इश्क़-ए-बुत इस्लाम पर तिफ़्ली में भी
हूर पर आँख न डाले कभी शैदा तेरा
दिल-लगी ग़ैरों से बे-जा है मिरी जाँ छोड़ दे
क़ब्र पर होवें दो न चार दरख़्त
फेर लाता है ख़त-ए-शौक़ मिरा हो के तबाह
हैं ये सारे जीते-जी के वास्ते
नीस्त बे-यार मुझ को हस्ती है
इश्क़ कुछ आप पे मौक़ूफ़ नहीं ख़ुश रहिए
ज़माने में वो मह-लक़ा एक है