उदास देख के मुझ को चमन दिखाता है
कई बरस में हुआ है मिज़ाज-दाँ सय्याद
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वादे पे तुम न आए तो कुछ हम न मर गए
मुँह न ढाँको अब तो सूरत देख ली
छुप के घर ग़ैर के जाया न करो
सदमे गुज़रे ईज़ा गुज़री
फिर वही कुंज-ए-क़फ़स है वही सय्याद का घर
गले लगाएँ बलाएँ लें तुम को प्यार करें
नाज़-ए-बेजा उठाइए किस से
हैरान सी है भचक रही है
अदू ग़ैर ने तुझ को दिलबर बनाया
आलम-पसंद हो गई जो बात तुम ने की
मय पिला ऐसी कि साक़ी न रहे होश मुझे