तबीअ'त को होगा क़लक़ चंद रोज़
ठहरते ठहरते ठहर जाएगी
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जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले
मुझे दे के दिल जान खोना पड़ा है
रास्ता रोक के कह लूँगा जो कहना है मुझे
इक परी का फिर मुझे शैदा किया
करीम जो मुझे देता है बाँट खाता हूँ
उदास देख के मुझ को चमन दिखाता है
वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके
ऐ जुनूँ तू ही छुड़ाए तो छुटूँ इस क़ैद से
ज़ुल्फ़ें छोड़ीं हैं कि जोड़ा उस ने छोड़ा साँप का
टूटे बुत मस्जिद बनी मिस्मार बुत-ख़ाना हुआ
तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना
मौत आ जाए क़ैद में सय्याद