शौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-दीदार में तेरे हमदम
जान आँखों में मिरी जान रहा करती है
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ज़ुल्फ़ें छोड़ीं हैं कि जोड़ा उस ने छोड़ा साँप का
सदमे गुज़रे ईज़ा गुज़री
क्यूँ-कर न लाए रंग गुलिस्ताँ नए नए
बरहना देख कर आशिक़ में जान-ए-ताज़ा आती है
हैरान सी है भचक रही है
वादे पे तुम न आए तो कुछ हम न मर गए
साइलाना उन के दर पर जब मिरा जाना हुआ
नाज़-ए-बेजा उठाइए किस से
दिल-लगी ग़ैरों से बे-जा है मिरी जाँ छोड़ दे
जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले
तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना
किसी का कोई मर जाए हमारे घर में मातम है