रास्ता रोक के कह लूँगा जो कहना है मुझे
क्या मिलोगे न कभी राह में आते जाते
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ऐ शब-ए-फ़ुर्क़त न कर मुझ पर अज़ाब
फिर वही कुंज-ए-क़फ़स है वही सय्याद का घर
हम जो कहते हैं सरासर है ग़लत
नाज़-ए-बेजा उठाइए किस से
पास-ए-दीं कुफ़्र में भी था मलहूज़
बुत करें आरज़ू ख़ुदाई की
आफ़त शब-ए-तन्हाई की टल जाए तो अच्छा
अगरी का है गुमाँ शक है मलागीरी का
मौत आ जाए क़ैद में सय्याद
जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले
मुज़्दा-बाद ऐ बादा-ख़्वारो दौर-ए-वाइज़ हो चुका
तबीअ'त को होगा क़लक़ चंद रोज़