पाँव के हाथ से गर्दिश ही रही मुझ को मुदाम
चाक की तरह से किस रोज़ मिरा सर न फिरा
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तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे
चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है
गले लगाएँ बलाएँ लें तुम को प्यार करें
सातों फ़लक किए तह-ओ-बाला निकल गया
इक परी का फिर मुझे शैदा किया
मज़ा पड़ा है क़नाअत का अहद-ए-तिफ़्ली से
बरहना देख कर आशिक़ में जान-ए-ताज़ा आती है
आँख से क़त्ल करे लब से जलाए मुर्दे
क्यूँ-कर न लाए रंग गुलिस्ताँ नए नए
अल्लाह के भी घर से है कू-ए-बुताँ अज़ीज़
ख़ामोश दाब-ए-इश्क़ को बुलबुल लिए हुए
आलम-पसंद हो गई जो बात तुम ने की