मौत आ जाए क़ैद में सय्याद
आरज़ू हो अगर रिहाई की
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चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है
लाएगी गर्दिश में तुझ को भी मिरी आवारगी
किसी का कोई मर जाए हमारे घर में मातम है
मय पिला ऐसी कि साक़ी न रहे होश मुझे
सदमे गुज़रे ईज़ा गुज़री
तौबा का पास रिंद-ए-मय-आशाम हो चुका
लैला मजनूँ का रटती है नाम
न अंगिया न कुर्ती है जानी तुम्हारी
दीवानों से कह दो कि चली बाद-ए-बहारी
बुत करें आरज़ू ख़ुदाई की
शौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-दीदार में तेरे हमदम
रिंदान-ए-इश्क़ छुट गए मज़हब की क़ैद से