लाएगी गर्दिश में तुझ को भी मिरी आवारगी
कू-ब-कू मैं हूँ तो तू भी दर-ब-दर हो जाएगा
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ज़माने में वो मह-लक़ा एक है
मुँह न ढाँको अब तो सूरत देख ली
क़ैस समझा मिरी लैला की सवारी आई
इमसाल फ़स्ल-ए-गुल में वो फिर चाक हो गए
तबीअ'त को होगा क़लक़ चंद रोज़
हम जो कहते हैं सरासर है ग़लत
बुत करें आरज़ू ख़ुदाई की
बस अब आप तशरीफ़ ले जाइए
चढ़ी तेरे बीमार-ए-फ़ुर्क़त को तब है
आफ़त शब-ए-तन्हाई की टल जाए तो अच्छा
आ अंदलीब मिल के करें आह-ओ-ज़ारियाँ
तौबा का पास रिंद-ए-मय-आशाम हो चुका