क्या सुन चुके हैं आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार हाथ
जाते हैं सू-ए-जेब जो बे-इख़्तियार हाथ
Mohsin Naqvi
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Jaun Eliya
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Allama Iqbal
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Faiz Ahmad Faiz
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मुझे दे के दिल जान खोना पड़ा है
साइलाना उन के दर पर जब मिरा जाना हुआ
लाला-रूयों से कब फ़राग़ रहा
शौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-दीदार में तेरे हमदम
बस अब आप तशरीफ़ ले जाइए
अपने मरने का अगर रंज मुझे है तो ये है
मज़ा पड़ा है क़नाअत का अहद-ए-तिफ़्ली से
आज इंकार न फ़रमाइए आप
दीद-ए-गुलज़ार-ए-जहाँ क्यूँ न करें सैर तो है
रास्ता रोक के कह लूँगा जो कहना है मुझे
नीस्त बे-यार मुझ को हस्ती है
लैला मजनूँ का रटती है नाम