इश्क़ कुछ आप पे मौक़ूफ़ नहीं ख़ुश रहिए
एक से एक ज़माने में तरहदार बहुत
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अल्लाह के भी घर से है कू-ए-बुताँ अज़ीज़
तू आप को पोशीदा ओ इख़्फ़ा न समझना
दिल किस से लगाऊँ कहीं दिलबर नहीं मिलता
मय पिला ऐसी कि साक़ी न रहे होश मुझे
किसी का कोई मर जाए हमारे घर में मातम है
ऐ परी हुस्न तिरा रौनक़-ए-हिंदुस्ताँ है
ऐ जुनूँ तू ही छुड़ाए तो छुटूँ इस क़ैद से
क्यूँ-कर न लाए रंग गुलिस्ताँ नए नए
न अंगिया न कुर्ती है जानी तुम्हारी
ज़ुल्फ़ों की तरह उम्र बसर हो गई अपनी
तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे
दीद-ए-लैला के लिए दीदा-ए-मजनूँ है ज़रूर